उन चरणों में मुझे दो शरण

पीछे

उन चरणों में मुझे दो शरण।
इस जीवन को करो हे मरण

बोलूँ अल्प, न करूँ जल्पना,
सत्य रहे, मिट जाय कल्पना,
मोह-निशा की स्नेह-गोद पर
सोये मेरा भरा जागरण।

आगे-पीछे दायें-बायें
जो आये थे वे हट जायें,
उठे सृष्टि से दृष्टि, सहज मैं
करूँ लोक-आलोक-सन्तरण।         

पुस्तक | अणिमा कवि | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | कविता छंद | मुक्त छन्द