प्राची में फैला मधुर राग

पीछे

इड़ा सर्ग-

प्राची में फैला मधुर राग
जिसके मंडल में  एक कमल  खिल उठा  सुनहला भर पराग
जिसके परिमल से व्याकुल हो  श्यामल कलरव सब उठे जाग
आलोक  रश्मि  से  बुने  उषा  अंचल   में  आंदोलन  अमंद
करता  प्रभात  का  मधुर पवन  सब ओर  वितरने  को मरंद
उस रम्य फलक पर  नवल चित्र सी  प्रकट हुई  सुन्दर बाला
वह नयन-महोत्सव की प्रतीक  अम्लान नलिन  की नव माला
सुषमा का मंडल  सुस्मित  सा  बिखराता  संसृति पर  सुराग
                           सोया जीवन का तम विराग । 
 

पुस्तक | कामायनी कवि | जयशंकर प्रसाद भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | महाकाव्य छंद | पद