दे मन का उपहार सभी को
पीछेदे मन का उपहार सभी को, ले चल मन का भार अकेले।
लहराया है दिल तो ललका
जा मधुबन में, मैदानों में,
बहुत बड़े वरदान छिपे हैं
तान-तरानों मुस्कानों में,
घबराया है जी तो मुड़ जा
सूने मरु, नीरव घाटी में,
दे मन का उपहार सभी को, ...................................।
जिसके सिर का बोझा कम है
जो औरों का बोझ बँटाए,
ओठों के सतही शब्दों से
दो तिनके भी कब हट पाए,
लाख जीभ में एक हृदय की
गहराई को छू पाती है,
कटती है हर एक मुसीबत एक तरह बस झेले-झेले।
दे मन का उपहार सभी को, ...................................।
छुटकारा तुमने पाया है
पूछूँ तो क्या कीमत देकर,
कर्ज चुका आए तुम अपना
लेकिन मुझको ज्ञात कि लेकर,
दया किसी की, कृपा किसी की
भीख किसी का, दान किसी का,
तुमसे सौ दर्जे अच्छे वे जो अपने बंधन से खेले।
दे मन का उपहार सभी को, ...................................।
जंजीरों की झनकारों से
हैं वीणा के तार लजाते,
जीवन के गंभीर स्वरों को
केवल भारी हैं सुन पाते,
गान उन्हीं का भान जिन्हें है
मानव के दुख दर्द दहन का,
गीत वही बाँटेगा सबको जो दुनिया की पीर सके ले।
दे मन का उपहार सभी को, ...................................।