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अपनी आवश्यकता का अनुचर बन गयारे मनुष्य !…
लज्जा सर्ग-
इस अर्पण में कुछ…
चिंता सर्ग-
उनको देख कौन रोया…
आशा सर्ग-
उषा सुनहले तीर बरसती…
उसी तपस्वी से लम्बे,…
ओ जीवन की मरु मरीचिका,…
श्रद्धा सर्ग-
और देखा वह सुन्दर…
“और यह क्या…
इड़ा सर्ग-
देखे मैंने वे…
दो बूँदें-
शरद का सुन्दर नीलाकाश, Read More
प्राची में फैला मधुर रागजिसके…
फिर तो चारों दृग आँसू चौधारे लगे बहाने। हाँ Read More
बिखरी अलकें ज्यों…
बीती विभावरी जाग री ! अम्बर…
’भरा था…
…
महाराणा का महत्त्व-
करि-कर-सम…
कर्म सर्ग-
यज्ञ समाप्त हो चुका…
कामायनी-लज्जा सर्ग-
यह आज समझ…
यों सोच रहे…
वह प्रेम न रह जाये…
समर्पण-
हृदय ही तुम्हें दान…