काव्यांश (कवि - जयशंकर प्रसाद)

अपनी आवश्यकता का अनुचर बन गया

अपनी आवश्यकता का अनुचर बन गया
रे मनुष्य !…

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ओ जीवन की मरु मरीचिका

चिंता सर्ग-


ओ जीवन की मरु मरीचिका,…

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दो बूँदें

दो बूँदें-

 

शरद का सुन्दर नीलाकाश, Read More

प्राची में फैला मधुर राग

इड़ा सर्ग-

प्राची में फैला मधुर राग
जिसके…

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फिर तो चारों दृग आँसू चौधारे लगे बहाने

फिर तो चारों दृग आँसू चौधारे लगे बहाने। हाँ Read More

बीती विभावरी जाग री

बीती विभावरी जाग री !
     अम्बर…

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महाराणा का महत्त्व

महाराणा का महत्त्व-

 

करि-कर-सम…

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यज्ञ समाप्त हो चुका तो भी

कर्म सर्ग-

 

यज्ञ समाप्त हो चुका…

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