कुछ साहस दो तो बात कहूँ मैं मन की
पीछेकुछ साहस दो तो बात कहूँ मैं मन की।
देख तुम्हें कितने भावों की
बाढ़ हृदय में आती,
औ’ कितनी साधों की भँवरें
नयनों में अकुलाती,
मैं वाचाल, तुम्हारे सम्मुख
मूक मगर हो जाता,
रसना हो जाती है जैसे पाहन की।
कुछ साहस दो तो बात कहूँ मैं मन की।