फिर तो चारों दृग आँसू चौधारे लगे बहाने

पीछे

फिर तो चारों दृग आँसू चौधारे लगे बहाने। हाँ
सचमुच ऐसा करुण दृश्य क्या करुणानिधि को भाता है?
कृपा नाव क्या उनकी इस सागर में तैरा करती है?
किसी मनुज का देख आत्मबल कोई चाहे कितना ही
करे प्रशंसा, किंतु हिमालय-सा भी जिसका हृदय रहे
और प्रेम करुणा, गंगा यमुना की धारा बही नहीं
कौन कहेगा उसे महान ? न मरु में; उसमें अन्तर है।
करुणा-यमुना, प्रेम-जाह्नवी का संगम है भक्ति-प्रयाग
जहाँ शांति अक्षयवट बन कर, युग-युग तक परिवर्धित हो। 

 

पुस्तक | प्रेम पथिक कवि | जयशंकर प्रसाद भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | लम्बी कविता छंद |