क्या गाऊँ ?

पीछे

क्या गाऊँ ?-माँ! क्या गाऊँ ?

गूँज रही हैं जहाँ राग-रागिनियाँ,
गाती हैं किन्नरियाँ-कितनी परियाँ-
कितनी पंचदशी कामिनियाँ,
वहाँ एक यह लेकर वीणा दीन
तन्त्री-क्षीण,-नहीं जिसमें कोई झंकार नवीन,
रुद्ध कण्ठ का राग अधूरा कैसे तुझे सुनाऊँ ?
                      माँ ! क्या गाऊँ ! 

पुस्तक | अनामिका कवि | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली रचनाशैली | कविता छंद |