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1. जानराय ! जानत सबैं, अन्तरगत…
अकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति सु ज्यौ छिनकौ न कहूँ…
नागमती वियोग खण्ड-
अगहन देवस घटा निसि…
अति मलीन बृषभानुकुमारी।हरि स्रमजल अंतर तनु…
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नैकु सयानप बाँक नहीं। Read More
अधिक बधिक तें सुजान, रीति रावरी है, …
अन्तर आँच उसास तचै अति अंग उसीजै उदेग की आवस। Read More
अन्तर उदेग दाह आँखिन प्रवाह-आँसू …
आस ही अकास मधि अवधि गुनै बढ़ाय …
आसा-गुन बाँधि कै भरोसो-सिल धरि छाती …
इत बाँट परी सुधि, रावरे भूलनि कैंसे उराहनो दीजियै…
उद्धव ! बेगिही ब्रज जाहु।सुरति सँदेस सुनाय…
उपमा एक न नैन गही।कबिजन कहत चलि आए सुधि करि…
ऊधो! क्यों राखै ये नैन ?सुमिरि सुमिरि गुन…
कंत रमैं उर अंतर में सु लहै नहीं क्यौं सुखरासि…
कहाँ एतो पानिप बिचारी पिचकारी धरै, …
कहाँ लगि मानिए अपनी चूक।बिन गोपाल, ऊधो, मेरी…
कातिक सरद चंद…
कारी कूर कोकिला कहाँ को बैर काढ़ति री, …
कुहुकि कुहुकि…
कोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाती।कत लिखि लिखि पठवत…
क्यों हँसि हेरि हर्यो हियरा अरु क्यौं हित कै चित…
खोय दई बुधि सोय गई सुधि रोय हँसे उनमाद जग्यो है। Read More
घनआनँद जीवनमूल सुजान की कौंधनहूँ न कहूँ दरसै। Read More
घर ही घर चौचँद-चाँचरि दै बहु भाँतिन रंग रचाय रह्यौ। Read More
चढ़ा अषाढ़ गँगन घन…
चंद चकोर की चाह करै घनआनँद स्वाति पपीहा कौं धावै। Read More
चैत बसंता…
जान के रूप लुभाय के नैननि बेंचि करी अधबीच ही लौंडी। Read More
जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह, …
जेठ जरै …
तपै लाग अब…
तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे। Read More
तिहारी प्रीति किधौं तरवारि ?दृष्टिधार करि…
दसन-बसन ओली भरियै रहै गुलाल, …
नागमती चितउर…
निसि-द्यौस खरी उर-माँझ अरी, छबि रंग-भरी मुरि चाहनि…
नेह-निधान सुजान-समीप तौ सींचति ही हियरा सियराई। Read More
1. घनआनँद रसऐन, कहौ कृपानिधि…
पहिलें घनआनँद सींचि सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार…
पाट महादेइ…
पाती-मधि छाती-छत लिखि न लिखाए जाहिं …
पाप के पुंज सकेलि सु कौन धौं आन घरी मैं बिरंचि…
पिउ बियोग…
पीरी परि देह छीनी राजति सनेह भीनी, …
पुष्प-गुच्छ-माला दी सबने, तुमने अपने अश्रु छिपाए। Read More
पूस जाड़ थरथर…
फागुन पवन…
फागुन महीना की कही ना परै बातै दिन- …
बधिकौ सुधि लेत सुन्यौ हति कै गति रावरी क्यौंहूँ…
बिकच नलिन लखें सकुचि मलिन होति, …
बिकल बिषाद-भरे ताहीं की तरफ तकि, …
बिन गोपाल बैरिन भई कुंजैं।तब ये लता लगति…
बिरहा-रबि सौं घट-ब्योम तच्यो बिजुरी सी खिबैं इकली…
भई पुछारि…
भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी, …
भर भादौं दूभर…
भा बैसाख तपनि…
भोर ते साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरो नेकु न हारति। Read More
मधुकर! ल्याए जोग सँदेसो।भली स्याम कुसलात…
मीत सुजान अनीत करौ जिन, हाहा न हूजियै मोहि अमोही। Read More
रंग लियौ अबलानि के अंग तें च्वाय कियौ चितचैन को…
राति-द्यौस कटक सजे ही रहै दहै दुख …
रोइ गँवाएउ बारह…
लाग कुआर…
लागेउ माँह परै…
वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै …
सँदेसनि मधुबन कूप भरे।जे कोउ पथिक गए हैं…
सावन बरिस मेह अतिवानी।…
सुधा तें स्रवत बिष, फूल मैं जमत सूल, …
सुनि री सजनी रजनी की कथा इन नैन-चकोरन ज्यौं बितई। Read More
सोंधे की बास उसासहि रोकति चंदन दाहक गाहक जी को। Read More
हरिमुख निरखि निमुख बिसारे।ता दिन तें मनो…
हीन भए जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समाने। Read More