आसा-गुन बाँधि कै भरोसो-सिल धरि छाती

पीछे

आसा-गुन बाँधि कै भरोसो-सिल धरि छाती
     पूरे  पन-सिंधु  मैं   न  बूड़त  सकायहौं।
दुख-दव हिय जारि अंतर उदेग-आँच
     रोम-रोम   त्रासनि   निरन्तर   तचायहौ।
लाख-लाख भाँतिन की दुसह दसानि जानि
     साहस  सहारि  सिर  आरै  लौं चलायहौं।
ऐसें घनआनँद गही है टेक मन माहिं
     ऐरे   निरदई   तोहि   दया  उपजायहौं।।

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी