आसा-गुन बाँधि कै भरोसो-सिल धरि छाती
पीछेआसा-गुन बाँधि कै भरोसो-सिल धरि छाती
पूरे पन-सिंधु मैं न बूड़त सकायहौं।
दुख-दव हिय जारि अंतर उदेग-आँच
रोम-रोम त्रासनि निरन्तर तचायहौ।
लाख-लाख भाँतिन की दुसह दसानि जानि
साहस सहारि सिर आरै लौं चलायहौं।
ऐसें घनआनँद गही है टेक मन माहिं
ऐरे निरदई तोहि दया उपजायहौं।।