रोइ गँवाएउ  बारह मासा

पीछे

नागमती वियोग खण्ड-


रोइ गँवाएउ  बारह मासा। सहस सहस  दुख  एक एक  साँसा।।
तिल तिल बरिस बरिस बरु जाई। पहर पहर जुग जुग न सिराई।।
सो  न  आउ  पिय रूप  मुरारी। जासों पाव  सोहाग सो  नारी।।
साँझ भए  झुरि झुरि  पँथ  हेरा। कौनु सो घरी  करैं  पिउ फेरा।।
दहि  कोइल  भै  कंत  सनेहा। तोला  माँस  रहा  नहिं  देहा।।
रकत  न  रहा  बिरह  तन गरा। रती रती  होइ  नैनन्हि  ढरा।।
पाव   लागि  चेरी   धनि  हाहा। चूरा  नेहु   जोरु  रे  नाहा।।
     बरिस देवस धनि रोइ कै हारि परी चित आँखि।
     मानुस  घर घर  पूँछि कै  पूँछै निसरी  पाँखि।।

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई