चढ़ा अषाढ़ गँगन घन गाजा
पीछेनागमती वियोग खण्ड-
चढ़ा अषाढ़ गँगन घन गाजा। साजा बिरह दुंद दल बाजा।।
धूम स्याम धौरे घन धाए। सेत धुजा बगु पाँति देखाए।।
खरग बीज चमकै चहुँ ओरा। बुंद बान बरिसै घन घोरा।।
अद्रा लाग बीज भुइँ लेई। मोहि पिय बिनु को आदर देई।।
औनै घटा आई चहुँ फेरी। कंत उबारु मदन हौं घेरी।।
दादुर मोर कोकिला पीऊ। करहिं बेझ घट रहै न जोऊ।।
पुख नछत्र सिर ऊपर आवा। हौं बिनु नाँह मँदिर को छावा।।
जिन्ह घर कंता ते सुखी तिन्ह गारौ तिन्ह गर्व।
कंत पियारा बाहिरैं हम सुख भूला सर्व।।