बधिकौ सुधि लेत सुन्यौ हति कै

पीछे

बधिकौ सुधि लेत सुन्यौ हति कै गति रावरी क्यौंहूँ न बूझि परै।
मति आवरी बावरी ह्वै जकि जाय उपाय कहूँ किन सूझि परै।
घनआनँद यौं अपनाय तजी इन सोचनि ही मन मूझि परै।
दिन रैन सुजान बियोग के बान सहै जिय पापी न जूझि परै।। 

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया