अन्तर आँच उसास तचै

पीछे

अन्तर आँच उसास तचै अति अंग उसीजै उदेग की आवस।
ज्यौं कहलाय मसोसनि ऊमस क्यौं हूँ कहूँ सु धरे नहिं थ्यावस।
नैनउ धारि दियें बरसैं घनआनँद छाई अनोखिये पावस।
जीवनि मूरति जान को आनन है बिन हेरें सदाई अमावस।।

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया