भर  भादौं  दूभर  अति  भारी

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नागमती वियोग खण्ड-


भर  भादौं  दूभर  अति  भारी। कैसें   भरौं  रैनि  अँधियारी।।
मंदिल  सून  पिअ  अनतै  बसा। सेज नाग  भै धै धै  डसा।।
रहौं  अकेलि  गहें  एक पाटी। नैन  पसारि  मरौं हिय फाटी।।
चमकि बीज घन गरजि तरासा। बिरह काल होइ जीउ गरासा।।
बरिसै मघा  झँकोरि झँकोरी। मोर दुइ नैन चुवहिं  जसि ओरी।।
पुरवा  लाग  पुहुमि जल  पूरी। आक  जवास  भई  हौं  झूरी।।
धनि सूखी  भर भादौं  माहाँ। अबहूँ  आइ  न  सींचति  नाहाँ।।
     जल थल भरे अपूरि सब गँगन धरति मिलि एक।
     धनि  जोवन  औगाह महँ  दे बूड़त  पिय टेक।।

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई