कोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाती
पीछेकोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाती।
कत लिखि लिखि पठवत नँदनंदन कठिन बिरह की काती।
नयन सजल, कागद अति कोमल, कर अँगुरी अति ताती।
परसत, जरै, बिलोकत भीजै दुहूँ भाँति दुख छाती।
क्यों समझै ये अंक सूर सुनु कठिन मदन सर घाती।
देखे जियहिं श्यामसुंदर के रहहिं चरन दिनराती।।