कहाँ एतो पानिप बिचारी पिचकारी धरै

पीछे

कहाँ एतो पानिप बिचारी पिचकारी धरै,
     आँसू-नदी  नैननि  उमगियै  रहति है।
कहाँ ऐसी राँचनि हरदि केसू केसरि में
     जैसी  पियराई गात  पगियै  रहति है।
चाँचरि-चोपहू सु तौ अवसर ही माचति पै
     चिंता की चहल चित्त जगियै रहति है।
तपनि बुझावनि अनँदघन जान बिन,
     होरी सी हमारे हियें लगियै रहति है।।

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