अति सूधो सनेह को मारग है

पीछे

अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नैकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झझकैं कपटी जे निसाँक नहीं।
घनआनँद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तें दूसरी आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ कहौ मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया