बिकल बिषाद-भरे ताहीं की तरफ तकि

पीछे

बिकल बिषाद-भरे ताहीं की तरफ तकि,
     दामिनिहूँ  लहकि बहकि  यौं  जर्यौ करै।
जीवन-अधार-पन-पूरित पुकारनि सौं,
     आरत  पपीहा  निति  कूकनि  कर्यौ करै।
अथिर उदेग-गति देखि कै अनँदघन, 
     पौन  बिडर्यौ  सो  बनबीथिन  रर्यौ करै।
बूँदैं न परति मेरे जान जान प्यारी तेरे
     बिरही को हेरि  मेघ आँसुनि  झर्यौ करै।।

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी