भा बैसाख  तपनि अति लागी

पीछे

नागमती वियोग खण्ड-


भा बैसाख  तपनि अति लागी। चोला चीर चँदन  भौ आगी।।
सूरुज जरत  हिवंचल ताका। बिरह बजागि  सौहँ रथ हाँका।।
जरत बजागिनी होउ पिय छाहाँ। आइ बुझाउ अँगारन्ह माहाँ।।
तोहि दरसन होइ सीतल नारी। आइ आगि सों करु फुलवारी।।
लागिउँ जरे  जरे जस भारू। बहुरि जो भूँजसि तजौं न बारू।।
सरवर हिया  घटत निति जाई। टूक टूक होइ  होइ बिहराई।।
बिहरत हिया  करहु पिय टेका। दिस्टि दवँगरा  मेरवहु एका।।
     कँवल जो बिगसा मानसर छारहिं मिलै सुखाइ।
     अबहुं बेलि फिरि पलुहै जौं पिय सीचहुँ आइ।।

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई