पीरी परि देह छीनी राजति सनेह भीनी

पीछे

पीरी परि देह छीनी राजति सनेह भीनी,
     कीनी  है  अनंग  अंग अंग  रंग-बोरी सी।
नैन पिचकारी ज्यौं  चल्यौई करे दिनरैन,
     बगराए  बारनि  फिरति  झकझोरी  सी।
कहाँ लौ बखानों घनआनँद दुहेली दसा,
     फागमई  भई  जान प्यारे  वह  भोरी सी।
तिहारे निहारे बिन प्राननि करति होरा,
     बिरह-अँगारनि  मगारि  हिय  होरी सी।।

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी