हरिमुख निरखि निमुख बिसारे
पीछेहरिमुख निरखि निमुख बिसारे।
ता दिन तें मनो भए दिगंबर इन नैनन के तारे।
घूँघटपट छाँड़े बीथिन महँ अहनिसि अटत उघारे।
सहज समाधि रूपरुचि इकटक टरत न टक तें टारे।
सूर, सुमति समुझति, जिय जानति, ऊधो! बचन तिहारे।
करैं कहा ये कह्यो न मानत लोचन हठी हमारे।।