फागुन महीना की कही ना परै बातै
पीछेफागुन महीना की कही ना परै बातै दिन-
रातैं जैसे बीतत सुने तें डफ-घोर कों।
कोऊ उठे तान गाय प्रान बान पैठि जाय
हाय चित-बीच पै न पाऊँ चितचोर कों।
मची है चुहल चहूँ दिसि चोप चाचरि सों,
कासों कहौं सहौं हौ बियोग-झमझोर कों।
मेरो मन आली वा बिसासो बनमाली बिन
बावरे लौं दौरि-दौरि परे सब ओर कों।।