लागेउ माँह परै अब पाला
पीछेनागमती वियोग खण्ड-
लागेउ माँह परै अब पाला। बिरहा काल भएउ जड़ काला।।
पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँपै।।
आइ सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।।
एहि मास उपजै रस मूलू। तूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू।।
नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।।
टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। बिरह पवन होइ मारै झोला।।
केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा।।
तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई तन तिनुवर भा डोल।
तेहि पर बिरह जराह कै चहै उड़ावा झोल।।