अकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति

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अकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति सु ज्यौ छिनकौ न कहूँ बहरै।
फिरिबोई करै चितचेटक चाक लौ धीरज को ठिकु क्यौं ठहरै।
भए कागद-नाव उपाय सबै घनआनँद नेह नदी गहरै।
बिन जान सजीवन कौन हरै सजनी बिरहा बिष की लहरै।।

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया