अकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति
पीछेअकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति सु ज्यौ छिनकौ न कहूँ बहरै।
फिरिबोई करै चितचेटक चाक लौ धीरज को ठिकु क्यौं ठहरै।
भए कागद-नाव उपाय सबै घनआनँद नेह नदी गहरै।
बिन जान सजीवन कौन हरै सजनी बिरहा बिष की लहरै।।
अकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति सु ज्यौ छिनकौ न कहूँ बहरै।
फिरिबोई करै चितचेटक चाक लौ धीरज को ठिकु क्यौं ठहरै।
भए कागद-नाव उपाय सबै घनआनँद नेह नदी गहरै।
बिन जान सजीवन कौन हरै सजनी बिरहा बिष की लहरै।।