काव्यांश (कवि - घनानंद)

 मोही मोह जनाय कै अहे अमोही जोहि

1.    जानराय ! जानत सबैं, अन्तरगत…

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अकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति

अकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति सु ज्यौ छिनकौ न कहूँ…

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अति सूधो सनेह को मारग है

अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नैकु सयानप बाँक नहीं। Read More

अधिक बधिक तें सुजान, रीति रावरी है

अधिक बधिक तें सुजान, रीति रावरी है,
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अन्तर आँच उसास तचै

अन्तर आँच उसास तचै अति अंग उसीजै उदेग की आवस। Read More

अन्तर उदेग दाह आँखिन प्रवाह-आँसू

अन्तर उदेग दाह आँखिन प्रवाह-आँसू
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आस ही अकास मधि

आस ही अकास मधि अवधि गुनै बढ़ाय
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आसा-गुन बाँधि कै भरोसो-सिल धरि छाती

आसा-गुन बाँधि कै भरोसो-सिल धरि छाती
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इत बाँट परी सुधि

इत बाँट परी सुधि, रावरे भूलनि कैंसे उराहनो दीजियै…

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इत भायनि भाँवरे भौंर भरै

इत भायनि भाँवरे भौंर भरै उत चायनि चाहि चकोर चकैं। Read More

कंत रमैं उर अंतर में

कंत रमैं उर अंतर में सु लहै नहीं क्यौं सुखरासि…

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कहाँ एतो पानिप बिचारी पिचकारी धरै

कहाँ एतो पानिप बिचारी पिचकारी धरै,
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कारी कूर कोकिला कहाँ को बैर काढ़ति री

कारी कूर कोकिला कहाँ को बैर काढ़ति री,
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क्यों हँसि हेरि हर्यो हियरा

क्यों हँसि हेरि हर्यो हियरा अरु क्यौं हित कै चित…

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खोय दई बुधि सोय गई सुधि

खोय दई बुधि सोय गई सुधि रोय हँसे उनमाद जग्यो है। Read More

घनआनँद जीवनमूल सुजान

घनआनँद जीवनमूल सुजान की कौंधनहूँ न कहूँ दरसै। Read More

घर ही घर चौचँद-चाँचरि दै

घर ही घर चौचँद-चाँचरि दै बहु भाँतिन रंग रचाय रह्यौ। Read More

चंद चकोर की चाह करै

चंद चकोर की चाह करै घनआनँद स्वाति पपीहा कौं धावै। Read More

चातिक चुहल चहुँ ओर चाहै स्वाति ही को

चातिक चुहल चहुँ ओर चाहै स्वाति ही को।
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छबि को सदन मोद मंडित बदन-चंद

छबि को सदन मोद मंडित बदन-चंद
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जान के रूप लुभाय के नैननि

जान के रूप लुभाय के नैननि बेंचि करी अधबीच ही लौंडी। Read More

जासों प्रीति ताहि निठुराई

जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह,
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झलकै अति सुन्दर आनन गौर

झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै। Read More

तब तौ छबि पीवत जीवत हे

तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे। Read More

दसन-बसन ओली भरियै रहै गुलाल

दसन-बसन ओली भरियै रहै गुलाल,
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निसि-द्यौस खरी उर-माँझ अरी

निसि-द्यौस खरी उर-माँझ अरी, छबि रंग-भरी मुरि चाहनि…

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नेह-निधान सुजान-समीप

नेह-निधान सुजान-समीप तौ सींचति ही हियरा सियराई। Read More

पहचानै हरि कौन मो से अनपहचान की

1.    घनआनँद रसऐन, कहौ कृपानिधि…

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पहिलें घनआनँद सींचि सुजान

पहिलें घनआनँद सींचि सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार…

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पाती-मधि छाती-छत लिखि न लिखाए जाहिं

पाती-मधि छाती-छत लिखि न लिखाए जाहिं
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पाप के पुंज सकेलि सु कौन

पाप के पुंज सकेलि सु कौन धौं आन घरी मैं बिरंचि…

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पीरी परि देह छीनी राजति सनेह भीनी

पीरी परि देह छीनी राजति सनेह भीनी,
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फागुन महीना की कही ना परै बातै

फागुन महीना की कही ना परै बातै दिन-
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बधिकौ सुधि लेत सुन्यौ हति कै

बधिकौ सुधि लेत सुन्यौ हति कै गति रावरी क्यौंहूँ…

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बिकच नलिन लखें सकुचि मलिन होति

बिकच नलिन लखें सकुचि मलिन होति,
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बिकल बिषाद-भरे ताहीं की तरफ तकि

बिकल बिषाद-भरे ताहीं की तरफ तकि,
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बिरहा-रबि सौं घट-ब्योम तच्यो

बिरहा-रबि सौं घट-ब्योम तच्यो बिजुरी सी खिबैं इकली…

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भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी

भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी,
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भोर ते साँझ लौ कानन ओर

भोर ते साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरो नेकु न हारति। Read More

मही-दूध सम गनै हंस-बक भेद न जानै

मही-दूध सम गनै हंस-बक भेद न जानै।
कोकिल-काक…

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मीत सुजान अनीत करौ जिन

मीत सुजान अनीत करौ जिन, हाहा न हूजियै मोहि अमोही। Read More

रंग लियौ अबलानि के अंग तें

रंग लियौ अबलानि के अंग तें च्वाय कियौ चितचैन को…

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राति-द्यौस कटक सजे ही रहै दहै दुख

राति-द्यौस कटक सजे ही रहै दहै दुख
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रावरे रूप की रीति अनूप

रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागत ज्यौं ज्यौं…

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लाजनि लपेटि चितवनि भेद-भाय भरी

लाजनि लपेटि चितवनि भेद-भाय भरी
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वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि

वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै
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सुधा तें स्रवत बिष, फूल मैं जमत सूल

सुधा तें स्रवत बिष, फूल मैं जमत सूल,
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सुनि री सजनी रजनी की कथा

सुनि री सजनी रजनी की कथा इन नैन-चकोरन ज्यौं बितई। Read More

सोंधे की बास उसासहि रोकति

सोंधे की बास उसासहि रोकति चंदन दाहक गाहक जी को। Read More

हीन भए जल मीन अधीन

हीन भए जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समाने। Read More