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1. जानराय ! जानत सबैं, अन्तरगत…
अकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति सु ज्यौ छिनकौ न कहूँ…
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नैकु सयानप बाँक नहीं। Read More
अधिक बधिक तें सुजान, रीति रावरी है, …
अन्तर आँच उसास तचै अति अंग उसीजै उदेग की आवस। Read More
अन्तर उदेग दाह आँखिन प्रवाह-आँसू …
आस ही अकास मधि अवधि गुनै बढ़ाय …
आसा-गुन बाँधि कै भरोसो-सिल धरि छाती …
इत बाँट परी सुधि, रावरे भूलनि कैंसे उराहनो दीजियै…
इत भायनि भाँवरे भौंर भरै उत चायनि चाहि चकोर चकैं। Read More
कंत रमैं उर अंतर में सु लहै नहीं क्यौं सुखरासि…
कहाँ एतो पानिप बिचारी पिचकारी धरै, …
कारी कूर कोकिला कहाँ को बैर काढ़ति री, …
क्यों हँसि हेरि हर्यो हियरा अरु क्यौं हित कै चित…
खोय दई बुधि सोय गई सुधि रोय हँसे उनमाद जग्यो है। Read More
घनआनँद जीवनमूल सुजान की कौंधनहूँ न कहूँ दरसै। Read More
घर ही घर चौचँद-चाँचरि दै बहु भाँतिन रंग रचाय रह्यौ। Read More
चंद चकोर की चाह करै घनआनँद स्वाति पपीहा कौं धावै। Read More
चातिक चुहल चहुँ ओर चाहै स्वाति ही को। …
छबि को सदन मोद मंडित बदन-चंद …
जान के रूप लुभाय के नैननि बेंचि करी अधबीच ही लौंडी। Read More
जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह, …
झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै। Read More
तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे। Read More
दसन-बसन ओली भरियै रहै गुलाल, …
निसि-द्यौस खरी उर-माँझ अरी, छबि रंग-भरी मुरि चाहनि…
नेह-निधान सुजान-समीप तौ सींचति ही हियरा सियराई। Read More
1. घनआनँद रसऐन, कहौ कृपानिधि…
पहिलें घनआनँद सींचि सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार…
पाती-मधि छाती-छत लिखि न लिखाए जाहिं …
पाप के पुंज सकेलि सु कौन धौं आन घरी मैं बिरंचि…
पीरी परि देह छीनी राजति सनेह भीनी, …
फागुन महीना की कही ना परै बातै दिन- …
बधिकौ सुधि लेत सुन्यौ हति कै गति रावरी क्यौंहूँ…
बिकच नलिन लखें सकुचि मलिन होति, …
बिकल बिषाद-भरे ताहीं की तरफ तकि, …
बिरहा-रबि सौं घट-ब्योम तच्यो बिजुरी सी खिबैं इकली…
भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी, …
भोर ते साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरो नेकु न हारति। Read More
मही-दूध सम गनै हंस-बक भेद न जानै।कोकिल-काक…
मीत सुजान अनीत करौ जिन, हाहा न हूजियै मोहि अमोही। Read More
रंग लियौ अबलानि के अंग तें च्वाय कियौ चितचैन को…
राति-द्यौस कटक सजे ही रहै दहै दुख …
रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागत ज्यौं ज्यौं…
लाजनि लपेटि चितवनि भेद-भाय भरी …
वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै …
सुधा तें स्रवत बिष, फूल मैं जमत सूल, …
सुनि री सजनी रजनी की कथा इन नैन-चकोरन ज्यौं बितई। Read More
सोंधे की बास उसासहि रोकति चंदन दाहक गाहक जी को। Read More
हीन भए जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समाने। Read More