पाती-मधि छाती-छत लिखि न लिखाए जाहिं

पीछे

पाती-मधि छाती-छत लिखि न लिखाए जाहिं
     काती लै  बिरह घाती  कीने जैसे  हाल हैं।
आँगुरी बहकि तहीं पाँगुरी किलकि होति
     ताती राती  दसनि के  जाल ज्वाल-माल हैं।
जान प्यारे जौब कहूँ दीजिए सँदेसो तौब
     आँवाँ सम  कीजियै जु  कान तिहि  काल हैं।
नेह-भीजी बातैं रसना पै उर-आँच लागैं
     जागैं  घनआनँद  ज्यों  पुंजनि  मसाल  हैं।। 

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी