फागुन  पवन  झँकोरे  बहा

पीछे

नागमती वियोग खण्ड-


फागुन  पवन  झँकोरे  बहा। चौगुन  सीउ  जाइ   किमि  सहा।।
तन  जस पियर  पात भा मोरा। बिरह न  रहै  पवन होइ  झोरा।।
तरिवर  झरै  झरै  बन ढाँखा। भइ  अनपत्त  फूल  फर  साखा।।
करिन्ह  बनाफति  कीन्ह हुलासू। मो कहँ  भा  जग  दून उदासू।।
फाग करहिं सब चाँचहर जोरी। मोहिं जिय लाइ दीन्हि जसि होरी।।
जौं पै पियहि  जरत अस भावा। जरत मरत  मोहि  रोस न आवा।।
राहितु  देवस   इहै  मन  मोरें। लागौं   कंत   थार  जेउँ  तोरें।।
     यह तन जारौं छार कै कहौं कि पवन उड़ाउ।
     मकु तेहि मारग होइ परौ कंत धरै जहँ पाउ।।

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई