निसि-द्यौस खरी उर-माँझ अरी

पीछे

निसि-द्यौस खरी उर-माँझ अरी, छबि रंग-भरी मुरि चाहनि की।
तकि मोरनि त्यौ चख ढोर रहे, ढरि गौ हिय ढोरनि बाहन की।
चटि दै कटि पै बटि प्रान गए गति सों मति मैं अवगाहनि की।
घनआनँद जान लखी जब तें जक लागियै मोहिं कराहनि की।

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया