पिउ बियोग  अस बाउर  जीऊ

पीछे

नागमती वियोग खण्ड-

 

पिउ बियोग  अस बाउर  जीऊ। पपिहा तस  बोलै  पिउ पीऊ।।
अधिक काम दगधै सो रामा। हरि जिउ लै सो गएउ पिय नामा।।
बिरह बान  तस लाग न डोली। रकत पसीजि भीजि तन चोली।।
सखि हिय  हेरि  हार  मैन मारी। हहरि परान  तजै अब नारी।।
खिन एक आव पेट महँ स्वाँसा। खिनहि जाइ सब होइ निरासा।।
पौनु डोलावहिं  सींचहिं चोला। पहरक समुझि  नारि मुख बोला।।
प्रान पयान  होत  केईं राखा। को मिलाव  चात्रिक कै  भाखा।।
     आह जो मारी बिरह की आगि उठी तेहि हाँक।
     हंस जो रहा  सरीर महँ पाँख जरे  तन थाक।।
 

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई