भोर ते साँझ लौ कानन ओर
पीछेभोर ते साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरो नेकु न हारति।
साँझ ते भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति।
जौ कहूँ भावतो दीठि परै घनआनँद आँसुनि औसर गारति।
मोहन-सोहन जोहन की लगियै रहै आँखिन के उर आरति।।
भोर ते साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरो नेकु न हारति।
साँझ ते भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति।
जौ कहूँ भावतो दीठि परै घनआनँद आँसुनि औसर गारति।
मोहन-सोहन जोहन की लगियै रहै आँखिन के उर आरति।।