अधिक बधिक तें सुजान, रीति रावरी है
पीछेअधिक बधिक तें सुजान, रीति रावरी है,
कपट-चुगौ दै फिरि निपट करौ बुरी।
गुननि पकरि लै, निपाँख करि छारि देहु,
मरहि न जियै, महा बिषम दया-छुरी।
हौं न जानौं, कौन धौं ही यामैं सिद्धि स्वारथ की
लखी क्यौं परति प्यारे अंतरकथा दुरी।
कैसे आसा-द्रुम पै बसेरो लहै प्रान-खग,
बनक-निकाई घनआनँद नई जुरी।।