सुनि री सजनी रजनी की कथा

पीछे

सुनि री सजनी रजनी की कथा इन नैन-चकोरन ज्यौं बितई।
मुख-चंद सुजान सजीवन को लखि पाएँ भई कुछ रीति गई।
अभिलाषनि आतुरताई घटा तबही घनआनँद आनि छई।
सुबिहाति न जानि परी भ्रम सी कब ह्वै बिसवासिनी बीति नई।। 

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया