लाग कुआर  नीर जग घटा

पीछे

नागमती वियोग खण्ड-

 

लाग कुआर  नीर जग घटा। अवहुँ आउ पिउ परभुमि लटा।।
तेहि देखे पिउ  पलुहै काया। उतरा चित्त  फेरि करु माया।।
उए अगस्ति  हस्ति घन गाजा। तुरै पलानि  चढ़े रन राजा।।
चित्रा मित  मीन घर  आया। कोकिल  पीउ  पुकारत पावा।।
स्वाति बुंद  चातिक  मुख  परे। सीप समुंद  मोति  लै भरे।।
सरवर सँवरि हंस चलि आए। सारस कुरुरहिं खँजन देखाए।।
भए अवगास  कास  बन फूले। कंत न फिरै  बिदेसहिं भूले।।
     बिरह हस्ति तन सालै खाइ करै तन चूर।
     बेगि आइ पिय बाजहु गाजहु होइ सदूर।। 

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई