राति-द्यौस कटक सजे ही रहै दहै दुख

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राति-द्यौस कटक सजे ही रहै दहै दुख
     कहा  कहौं  गति  या  बियोग  बजमारे की।
लियो घेरि औचक अकेलो कै बिचारी जीव
     कछु  न  बसाति  यौं  उपाय-बल-हारे  की।
जान प्यारे लागौ न गुहार तौ जुहार करि
     जूझिहै  निकसि   टेक  गहे  पन धारे  की।
हेत-खेत धूरि चूर-चूर ह्वै मिलैगो तब
     चलैगी   कहानी   घनआनँद   तिहारे  की।।

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी