आस ही अकास मधि

पीछे

आस ही अकास मधि अवधि गुनै बढ़ाय
     चोपनि चढ़ाय दीनौ कीनौ खेल सो यहै।
निपट कठोर ये हो ऐचत न आप ओर
     लाडिले सुजान सों दुहेली दसा को कहै।
अचिरजमई मोहिं भई घनआनंद यौं
     हाथ साथ लाग्यौपै समीप न कहूँ लहै।
बिरह समीर की झकोरनि अधीर, नेह-
     नीर भीज्यौ जीव तऊ गुड़ी लौ उड़्यौ रहै।।  

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी