तिहारी प्रीति किधौं तरवारि

पीछे

तिहारी प्रीति किधौं तरवारि ?
दृष्टिधार करि मारि साँवरे घायल सब ब्रजनारि।
रही सुखेत ठौर बृंदाबन, रनहु न मानत हारि।
बिलपति रही सँभारत छन छन बदन सुधाकर बारि।
सुंदरस्याम मनोहर मूरति रही हौ छबिहि निहारि।
रंचक सेष रही सूरज प्रभु अब जनि डारौ मारि।।

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद