भई पुछारि  लीन्ह बनबासू

पीछे

नागमती वियोग खण्ड-

 

भई पुछारि  लीन्ह बनबासू। बैरिनि सवति दीन्ह चिल्हवाँसू।।
कै खर बान  कसै पिय लागा। जौं घर आवै अबहूँ कागा।।
हारिल  भई  पंथ  मैं सेवा। अब तहँ  पठवौ  कौनु परेवा।।
धौरी पंडुक कह पिय ठाऊँ। जौ चित रोख न दोसर नाऊँ।।
जाहि  बया  गहि  कंठ लवा। करे  मेराउ  सोई  गौरवा।।
कोइलि  भई  पुकारत  रही। महरि  पुकारि  लेहु रे दही।।
पियरि तिलौरि  आव जलहंसा। बिरहा पठि  हिएँ कटनंसा।।
     जेहि पंखी कहँ अढ़वौ कहि सो बिरह कै बात।
     सोई पंखि  जाइ डहि  तरिवर  होइ  निपात।। 

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई