चैत   बसंता   होइ  धमारी

पीछे

नागमती वियोग खण्ड-


चैत   बसंता   होइ  धमारी। मोहि  लेखें  संसार  उजारी।।
पंचम  बिरह  पंच सर  मारै। रकत रोइ  सगरौ  बन  ढारै।।
बूड़ि उठे  सब  तरिवर पाता। भीज मंजीठ  टेसू बन राता।।
मोरैं आँव  फरैं अब लागे। अबहुँ सँवरि  घर  आउ  सभागे।।
सहस भाव  फूली  बनफती। मधुकर  फिरे  सँवरि  मालती।।
मो कहँ फूल भए जस काँटे। दिस्टि परत तन लागहिं चाँटे।।
भर जोबन एहु नारँग साखा। सोवा बिरह अब जाइ न राखा।।
     घिरिनि परेवा आव जस आइ परहु पिय टूटि।
     नारि पराएँ हाथ है तुम्ह बिनु पाव न छूटि।। 

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई