अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी

पीछे

नागमती वियोग खण्ड-


अगहन देवस घटा निसि बाढ़ी। दूभर दुखे सो जाइ किमि काढ़ी।।
अब धनि  देवस  बिरह भा राती। जरै बिरह  ज्यों  दीपक बाती।।
काँपा  हिया   जनावा  सीऊ। तौ  पै  जाइ  होइ  सँग  पीऊ।।
घर  घर  चीर  रचा  सब  काहूँ। मोर  रूप  रँग लै  गा  नाहूँ।।
पलटि न  बहुरा  गा जो  बिछोई। अबहूँ फिरै  फिरै  रँग  सोई।।
सियरि अगिनि बिरहिनि हिय जारा। सुलगि सुलगि दगधै भै छारा।।
यह   दुख  दगध  न  जानै  कंतू। जोबन  जीम  करै  भसमंतू।।
     पिय सौं कहेहु सँदेसरा ऐ भँवरा ऐ काग।
     सो धनि बिरहें जरि गई तेहिक धुआँ हम लाग।। 

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई