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अकुलानि के पानि पर्यौ दिनराति सु ज्यौ छिनकौ न कहूँ…
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नैकु सयानप बाँक नहीं। Read More
अन्तर आँच उसास तचै अति अंग उसीजै उदेग की आवस। Read More
अवधेस के द्वारे सकारें गइ सुत गोद कै भूपति लै निकसे। Read More
आज भटू इक गोपवधू भई बावरी नेकु न अंग सम्हारै। Read More
आजु गई हुती भोरही हौं रसखानि रई कहि नन्द के भौंनहिं। Read More
आवत हौ रस के चसके तुम जानत हौ रस होत कहा हो। Read More
इत बाँट परी सुधि, रावरे भूलनि कैंसे उराहनो दीजियै…
इत भायनि भाँवरे भौंर भरै उत चायनि चाहि चकोर चकैं। Read More
कंत रमैं उर अंतर में सु लहै नहीं क्यौं सुखरासि…
कबहूँ ससि मागत आरि करैं कबहूँ प्रतिबिंब निहारि…
कल कानन कुण्डल मोरपखा उर पैं बनमाल बिराजति है। Read More
कागर कीर ज्यों भूषन-चीर सरीरु लस्यो तजि नीरु ज्यों…
कानन दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मन्द बजैहै। Read More
कान्ह भए बस बाँसुरी के अब कौन सखी हमकों चहिहै। Read More
कीर के कागर ज्यों नृपचीर, बिभूषन उप्पम अंगनि पाई। Read More
कुंभकरन्नु हन्यो रन राम दल्यो दसकंधरु कंधर तोरे। Read More
कौन ठगौरी भरी हरि आजु बजाई है बाँसुरिया रंग भीनी। Read More
क्यों हँसि हेरि हर्यो हियरा अरु क्यौं हित कै चित…
खंजन नैन फँसे पिंजरा छवि नाहि रहै थिर कैसहूँ माई। Read More
खेलत फाग सुहाग भरी अनुरागहिं लालन कों धरि कै। Read More
खोय दई बुधि सोय गई सुधि रोय हँसे उनमाद जग्यो है। Read More
गहि मंदर बंदर-भालु चले, सो मनो उनये घन सावनके। Read More
घनआनँद जीवनमूल सुजान की कौंधनहूँ न कहूँ दरसै। Read More
घर ही घर चौचँद-चाँचरि दै बहु भाँतिन रंग रचाय रह्यौ। Read More
चंद चकोर की चाह करै घनआनँद स्वाति पपीहा कौं धावै। Read More
गावैं गुनी गनिका गन्धर्ब औ सारद सेस सबै गुन गावत। Read More
सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं। Read More
शंकर से सुर जाहि भजैं चतुरानन ध्यान में धर्म बढ़ावैं। Read More
लाय समाधि रहे बरम्हादिक जोगी भये पर अन्त न पावैं। Read More
गुंज गरें सिर मोरपखा अरु चाल गयंद की मो मन भावै। Read More
जा दिन तें निरख्यो नन्दनन्दन कानि तजी घर बन्धन…
जा दिन तें वह नन्द को छोहरो या बन धेनु चराइ गयो…
जान के रूप लुभाय के नैननि बेंचि करी अधबीच ही लौंडी। Read More
जे रजनीचर बीर बिसाल, कराल बिलोकत काल न खाए। Read More
जो दससीसु महीधर ईसको बीस भुजा खुलि खेलनिहारो। Read More
झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै। Read More
ठाढ़े हैं नवद्रुमडार गहें, धनु काँधें धरें, कर सायकु…
तन की दुति स्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं। Read More
तब तौ छबि पीवत जीवत हे, अब सोचन लोचन जात जरे। Read More
तीखे तुरंग कुरंग सुरंगनि साजि चढ़े छँटि छैल छबीले। Read More
दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मंदिर माहीं। Read More
धरि धीर कहैं, चलु, देखिअ जाइ, जहाँ सजनी ! रजनी…
धूर भरे अति शोभित स्याम जू तैसी बनी सिर सुन्दर…
निसि-द्यौस खरी उर-माँझ अरी, छबि रंग-भरी मुरि चाहनि…
नेह-निधान सुजान-समीप तौ सींचति ही हियरा सियराई। Read More
नैन लख्यो जब कुंजन तें वन तें निकस्यो अँटक्यो मटक्यो…
नौ लख गाय सुनी हम नन्द के तापर दूध दही न अघाने। Read More
पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ। Read More
पद कोमल, स्यामल-गौर कलेवर राजत कोटि मनोज लजाएँ। Read More
पदकंजनि मंजु बनीं पनहीं धनुहीं सर पंकज-पानि लिएँ। Read More
पहिलें घनआनँद सींचि सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार…
पाप के पुंज सकेलि सु कौन धौं आन घरी मैं बिरंचि…
पुरतें निकसी रघुबीरबधू धरि धीर दए मगमें डग द्वै। Read More
प्रेम सों पीछें तिरीछें प्रियाहि चितै चितु दै चले…
फागुन लाग्यो सखी जब तें तब तें ब्रजमंडल धूम मच्यो…
बंक बिलोकनि है दुखमोचन दीरघ लोचन रंग भरे हैं। Read More
बजी है बजी रसखानि बजी सुनिकै अब गोपकुमारि न जीहै। Read More
बधिकौ सुधि लेत सुन्यौ हति कै गति रावरी क्यौंहूँ…
बर दंतकी पंगति कुंदकली अधराधर-पल्लव खोलन की। Read More
बिंधिके बासी उदासी तपी ब्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे। Read More
बिरहा-रबि सौं घट-ब्योम तच्यो बिजुरी सी खिबैं इकली…
भोर ते साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरो नेकु न हारति। Read More
भौंह भरी बरुनी सुथरी अतिसै अधरानि रंगी रंग रातौ। Read More
मकराकृत कुंडल गुंज की माल वे लाल लसैं पग पाँवरिया। Read More
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के…
मीत सुजान अनीत करौ जिन, हाहा न हूजियै मोहि अमोही। Read More
मुखपंकज, कंजबिलोचन मंजु, मनोज-सरासन-सी बनीं भौंहैं। Read More
मैन मनोहर बैन बजै सु सजे तन सोहत पीत पटा है। Read More
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं गुंज की माल गरें पहिरौंगी। Read More
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। Read More
रंग लियौ अबलानि के अंग तें च्वाय कियौ चितचैन को…
रजनीचर-मत्तगयंद-घटा बिघटै मृगराजके साज लरै। Read More
राम सरासन तें चले तीर रहे न सरीर हड़ावरि फूटीं। Read More
रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागत ज्यौं ज्यौं…
लोक की लाज तजी तबहीं जब देख्यो सखी ब्रजचन्द सलोनो। Read More
वा मुसकान पै प्रान दियो जिय जान दियो वह तान पै…
सर चारिक चारु बनाइ कसें कटि, पानि सरासनु सायकु…
सर-तोमर सेलसमूह पँवारत, मारत बीर निसाचरके।इत…
सरजू बर तीरहिं तीर फिरैं रघुबीर सखा अरु बीर सबै। Read More
साँवरे-गोरे सलोने सुभायँ, मनोहरताँ जिति मैनु लियो…
सीस जटा, उर-बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी-सी भौंहैं। Read More
सुनि री सजनी रजनी की कथा इन नैन-चकोरन ज्यौं बितई। Read More
सुनिकै यह बात हियें गुनि कै तब बोलि उठि बृषभान-लली। Read More
सूर सँजोइल साजि सुबाजि, सुसेल धरैं बगमेल चले हैं। Read More
सेस सुरेस दिनेस गनेस प्रजेस धनेस महेस मनाओ। Read More
सोंधे की बास उसासहि रोकति चंदन दाहक गाहक जी को। Read More
सोहत है चँदवा सिर मौर के जैसियै सुन्दर पाग कसी…
हीन भए जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समाने। Read More