रावरे रूप की रीति अनूप

पीछे

रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागत ज्यौं ज्यौं निहारियै।
त्यों इन आँखिन बानि अनोखी, अघानि कहूँ नहिं आनि तिहारियै।
एक ही जीव हुतौ सु तौ वार्यो, सुजान सँकोच औ सोच सहारियै।
रोकी रहै न, दहै घनआनँद बावरी रीझि के हाथन हारियै।।

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया