लोक की लाज तजी तबहीं

पीछे

लोक की लाज तजी तबहीं जब देख्यो सखी ब्रजचन्द सलोनो।
खंजन मीन सरोजन की छवि गंजन नैन लला दिनहोनो।।
रसखानि निहारि सकें जु सम्हारि कै को तिय है वह रूप सुठोनो।
भौंह कमान सों जोहन कों सब बेधत प्राननि नन्द को छौनो।।
 

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