या लकुटी अरु कामरिया

पीछे

या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवो निधि को सुख नन्द की गाइ चराइ बिसारौं।।
रसखानि कबौं इन आँखिन सों ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
 

पुस्तक | सुजान रसखान कवि | रसखान भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया