इत भायनि भाँवरे भौंर भरै

पीछे

इत भायनि भाँवरे भौंर भरै उत चायनि चाहि चकोर चकैं।
निसि बासर फूलनि भूलनि मैं अति रूप की बात न ब्यौरि सकैं।
घनआनँद घूँघट-ओट भए तब बाबरे लौं चहुँ ओर तकैं।
पिय के मुख कौतुक देखि सखी, निज नैन बिसेष सुजान छकैं। 

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया