दूलह श्रीरघुनाथ बने

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दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मंदिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुंदरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं।।
रामको रूपु निहारति जानकी कंकनके नगकी परछाहीं।
यातैं सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही पल टारत नाहीं।।

पुस्तक | कवितावली कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया