कागर कीर ज्यों भूषन-चीर

पीछे

कागर कीर ज्यों भूषन-चीर सरीरु लस्यो तजि नीरु ज्यों काई।
मातु-पिता प्रिय लोग सबै सनमानि सुभायँ सनेह सगाई।।
संग सुभामिनि, भाइ भलो, दिन द्वै जनु औध हुते पहुनाईं।
राजिवलोचन रामु चले तजि बाप को राजु बटाउ की नाईं।।
 

पुस्तक | कवितावली कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया