राम सरासन तें चले

पीछे

राम सरासन तें चले तीर रहे न सरीर हड़ावरि फूटीं।
रावन धीर न पीर गनी लखि लै कर खप्पर जोगिनि जूटीं।।
श्रोनित-छीट छटानि जटे तुलसी प्रभु सोहैं महा छबि छूटीं।
मानो मरक्कत-सैल बिसालमें फैनि चलीं बर बीरबहूटीं।।

पुस्तक | कवितावली कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया