ठाढ़े हैं नवद्रुमडार गहें

पीछे

ठाढ़े हैं नवद्रुमडार गहें, धनु काँधें धरें, कर सायकु लै।
बिकटी भृकुटी, बड़री अँखियाँ, अनमोल कपोलन की छबि है।।
तुलसी अस मूरति आनु हिएँ, जड! डारु धौं प्रान निछावरि कै।
श्रमसीकर साँवरि देह लसै, मनो रासि महा तम तारकमै।।

पुस्तक | कवितावली कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया