छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं

पीछे

गुंज गरें सिर मोरपखा अरु चाल गयंद की मो मन भावै।
साँवरो नन्दकुमार सबै ब्रजमंडली मैं ब्रजराज कहावै।
साज समाज सबै सिरताज औ लाज की बात नहीं कहि आवै।
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं।।

पुस्तक | सुजान रसखान कवि | रसखान भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | सवैया