छबि को सदन मोद मंडित बदन-चंद

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छबि को सदन मोद मंडित बदन-चंद
      तृषित चखनि लाल, कब धौं दिखाय हौ।
चटकीलो भेख करें मटकीली भाँति सो ही
      मुरली अधर धरे, लटकत आय हौ।
लोचन ढुराय कछू मृदु मुसक्याय, नेह
      भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।
बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रानप्यारे,
      कृपानिधि, आनंद को घन बरसाय हौ।।   

पुस्तक | घनानंद कवित्त कवि | घनानंद भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | घनाक्षरी